Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु विषय खुदगर्ज

खुदगर्ज

तूने सोचा बस अपना ही फायदा,
दूसरों का दर्द तुझे कब भाया?
हर राह पर सिर्फ खुद को देखा,
कभी न किसी का हाथ थाम पाया।

तेरी आँखों में चाहत थी,
पर उसमें सिर्फ तेरी मंज़िल थी।
कभी किसी की परवाह न की,
बस अपनी ही राह सजाई थी।

जब तुझसे कोई उम्मीद रखे,
तू ठोकर देकर आगे बढ़ जाता,
जिन्होंने तुझपर जान लुटाई,
तू उन्हें भी बेच चला जाता।

खुदगर्ज़ी की आग में जलकर,
तूने सब रिश्ते मिटा दिए,
पर सोच, जब तन्हा रहेगा,
कौन देगा तुझे ये साए?

इस दुनिया में जो देता है,
वही पाता है, यह सच है,
खुदगर्ज़ी के अंधेरे में,
तूने हर रोशनी को बुझा दिया है।

अब भी वक्त है, संभल ज़रा,
अपने भीतर झाँक के देख,
कहीं ऐसा न हो, कि जब जागे,
तो तेरा कोई भी न रहे।

सुनीता गुप्ता 

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1 Comments

hema mohril

26-Mar-2025 05:03 AM

amazing

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